क्योंकि ख्वाबों से निकलकर मंजिलों तक पहुंचने के लिए भटकना जरुरी है..
क्यों अपने ख्वाबों को मौका नहीं देते हो? दो-चार असफलताओं के बाद क्यों निराश हो जाते हो? क्यों ये सोचते हो कि तुम्हारी कहानी खत्म हो गयी? कहानियाँ तब खत्म होती है, जब कहानियाँ शुरु होती है।
अपने सफर पर निकलो। kअपनी मंजिल को तलाशों और, और वो काम करो जो तुम्हें इस दुनियाँ में सबसे ज्यादा अजीज है।
अपने ख्वाबों को समय दो। पालो इन्हें और इन्हें पूरा करने में ऐसे जुट जाओ जैसे, वो मुकाम और वो मंजिल सदियों से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।
समय लगेगा, मेहनत लगेगी लेकिन तुम्हें भटकना नहीं है। वो कुर्सी, वो ओहदा जिस पर तुम्हारा नाम लिखा हुआ है, वो उस पहले दिन से तुम्हारा है, जिस दिन से तुमने इस दुनिया में आँखें खोली।
लेकिन वहाँ जरा जल्दी पहुँचों नहीं तो उस कुर्सी पर कोई और बैठ जायेगा।
ठीक वैसे ही जैसे रिजर्वेशन वाली सीट पर पैसेंजर के न आने पर कोई और पैसेंजर वहाँ सो जाता है।